स्टेशन पर उसने सामान के लिए कुली को आवाज दी
क्योंकि
उसे ढोने थे अपने पाँव,
जो उस समय
उसके सूटकेस से अधिक भारी थे क्योंकि उनके फीतों में पीछे छूटती
ज्वरग्रस्त बेटी की कराहें बँधी थीं
वह
रह रह कर
वह अपने हाथ को थर्मामीटर की तरह झटकने लगता
सब तपा हुआ था
मानों बुखार में हो सृष्टि
जैसे तैसे
धकियाते हुए
उसने खुद को गाड़ी में चढ़ाया
और अनमना सा सीट पर बैठ गया
द्रुत गति से भागते पेड़ों और पगडंडियों को देखते हुए
उसने सोचा - काश, बुखार को भी ले आता सूटकेस में बंद कर
तो इस बियाबान में फेंक देता
फिर अपने इस भावनात्मक मूर्खतापूर्ण विचार को खारिज करके
वह मन ही मन ई एम आई को कोसने लगा
और फोन मिलाकर बिटिया को समझाने लगा
कि नौकरी है
जाना पड़ता है
इसी से चलता है घर-बार
तुम्हारी पढ़ाई,
पता नहीं, उधर से उसने क्या कहा
लेकिन वह
मेरी बेटी बहादुर है कह कर जोर-जोर से हॅंसने लगा
जबकि उसकी पेशानी पर बल थे
और उसकी हॅंसी
होठों से निकलते ही
बुखार की नीम बेहोशी में डूबी लड़की की तरह लड़खड़ा कर गिर पड़ी